Rakesh rakesh

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लेखनी प्रतियोगिता -29-Apr-2023 अकेले ने दुनिया बदल दी

मेरा सपना था, नामी क्रिकेटर बनने का अपने जीवन के सबसे बड़े सपने को पूरा करना उस दिन मुझे असंभव लगने लगा था, जब पापा ने मेरे क्रिकेट बैट को जलाकर मुझसे गुस्से में कहा था कि "अब मैं इस महंगाई के जमाने में अकेले परिवार की जिम्मेदारी उठाते उठाते थक चुका हूं। अब तू कमाने लायक हो गया है, इसलिए फालतू के काम छोड़कर चार पैसे कमा कर घर मे ला।"


मां छोटी बहन छोटा भाई भी झूठे मन से मेरी तरफ थे और सच्चे मन से पिताजी की तरफ।

मुझे भी पता था कि मेरा परिवार अपनी जगह बिल्कुल सही है, क्योंकि हमारे घर की आर्थिक स्थिति बिल्कुल भी अच्छी नहीं थी। और ऊपर से क्रिकेट की दीवानगी की वजह से मैंने नौवीं कक्षा पास करके पढ़ाई छोड़ दी थी।

इसलिए दूसरे दिन ही मे अपने घर के पास वाले इंडस्ट्री एरिया में एक फैक्ट्री में नौकरी पर लग गया था। फैक्ट्री में काम करते वक्त मुझे ऐसा लगता था कि जैसे मुझे जीवन भर के लिए कारावास मिल गया है। 

और एक बरस की नौकरी के बाद ही हद से ज्यादा वायु प्रदूषण के माहौल में रहने की वजह से मेरे फेफड़े खराब हो गया। 

अस्पताल की दूसरी मंजिल पर मैं दाखिल था। तब मैंने करीब 15 वर्ष के बाद अस्पताल की खिड़की से पार्क में दो तीन गौरैया चिड़ियों को दाना चुगते हुए देखा। उस दिन के बाद मैं रोज खिड़की से उन चिड़ियों को रोज दाना चुगते हुए देखने लगा। 

तब एक दिन मेरे साथ वाले मरीज ने बताया कि ज्यादा प्रदूषण की वजह से दिन-ब-दिन गौरैया चिड़िया की नस्ल खत्म होती जा रही है।

 मैं कम पढ़ा लिखा था। पर प्रदूषण से नुकसान कि मुझे भी जानकारी थी। क्योंकि अधिक वायु प्रदूषण की वजह से ही मेरे भी फेफड़े खराब हुए थे। लेकिन मैं अकेला प्रदूषण को कैसे रोक सकता था। 

जब मेरी तबीयत सुधार ने की जगह और बिगड़ने लगी तो डॉक्टरों ने मुझे शहर के सबसे बड़े अस्पताल में रेफर कर दिया। इसलिए जब मुझे अपनी मौत करीब दिखाई देने लगे लगी तो मैंने दिमाग से नहीं दिल से सोच कर सोशल मीडिया पर संदेश भेज दिया कि मैं अपनी किडनी और नेत्र बेचना चाहता हूं। और जो व्यक्ति मेरे  किडनी नेत्र खरीदेगा उस से निवेदन है कि उस पैसे को गौरैया चिड़िया की नस्ल को बचाने में खर्च करें और इस संदेश के बाद में देश दुनिया में मशहूर होगा गया था।

और कुछ दिनों में पक्षियों के प्रति जनता का लगाव बढ़ने लगा और प्रदूषण के खिलाफ विरोध तेज होने लगे। मुझे यह बात भी धीरे-धीरे समझ में आ गई थी कि अकेला मनुष्य भी दुनिया बदल सकता है। 

मैंने चिड़ियों की जान बचाई परमात्मा ने मेरी जान बचा दी।

हमारी कॉलोनी के पास से इंडस्ट्री एरिया शहर से बाहर जाने के बाद और कॉलोनी से मोबाइल टावर हटने के बाद खुद मेरी छत पर छोटी बड़ी लगाकर कम से कम पाचास साठ चिड़िया आने लगी थी।

ज्यादा मशहूर होने की वजह से मुझे मनपसंद की नौकरी क्रिकेट एकेडमी में
जूनियर कोच की मिल गई।

अब मुझे ऐसा लगने लगा था कि जीवन के अंत समय तक मेरे मन में ऐसे ही सुकून शांति रहेगी, क्योंकि मुझे प्रकृति से प्रेम हो गया था और सबसे ज्यादा मुझे इन चंचल चिड़ियों की चंचलता देखने में आनंद आने लगा था। इन चिड़ियों को देखकर ऐसा लगता है मनुष्य के मन के बाद यह चिड़िया चंचल होती हैं, कभी फूर से यहां कभी फुर वहां। मनुष्यों को यह ध्यान रखना चाहिए कि जैसे पृथ्वी हमारा घर है वैसे ही पृथ्वी अन्य प्रजातियों का भी घर है। हमारी तरह उन्हें भी जीने का पूरा अधिकार है। और आप सब भी मेरी तरह प्राकृतिक प्रेमी बन जाओ।

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5 Comments

Abhinav ji

30-Apr-2023 08:24 AM

Very nice 👍

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Gunjan Kamal

30-Apr-2023 12:30 AM

👏👌

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